अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष लेखनीय : सीमा रहस्यमयी
कागारौल/आगरा । उठो नारी अब प्रस्थान करो,
असुरों का तुम संहार करो। कर में लेकर खड़ग- खप्पर,कालिका मैया का रूप धरो। उठो नारी–रूप भवानी का तुम हो,चंडिका भी तुम ही हो। रौद्र रूप में आतीं जब,तुम अग्नि की बरसात करो।उठो नारी–तुम ही हो राघव-सीता,विदेह-दुलारी मिथिला की सीता। कुदृष्टि कोई तुम पर डाले,भस्म करो सोने की लंका। उठो नारी–तुम राधा, तुम ही मीरा,कान्हा की हो तुम बांसुरिया। अब तान सुनाओ मधुर ऐसी,सब जग है जाए बावरिया। लेखनीय शिक्षिका सीमा रहस्यमयी आगरा।