भीषण हादसा, मौत का तांडव, मुआवजा और जांच यह कहानी है भारतीय रेल की!
ना कोई इस्तीफा दे देता है, ना कोई जिम्मेदारी लेता है
राजनीतिक कवच सिर्फ हादसे पर मरहम
भयानक ट्रेन हादसा, सैकड़ों की मौत, दर्जनों घायल, मृतकों के परिजनों को 5 से 10 लाख, घायलों को 50 हजार से दो लाख की मदद- भीषण हादसे के बाद जांच के आदेश, आयोग गठन और जांच की रिपोर्ट आने तक महीनों का समय लेकिन उसके पहले यदि एक और दुर्घटना घट गई,भीषण हादसा हो गया तो फिर ताजी घटना फिर टीवी चैनलों पर और अखबारों में देखिए और पुरानी भूल जाइए…. वही जांच के आदेश,आयोग का गठन और महीनों रिपोर्ट आने का इंतजार.. और खुद आकलन करिए कि पहली घटना बड़ी थी कि मौजूदा घटना..यह कहानी है भारतीय रेल की
जिस रफ्तार से हम भारतीय रेल को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं उससे इतना तो साफ है कि लगभग 15-20 साल अभी और इंतजार करना पड़ेगा,जापान जैसी टेक्नोलॉजी को पूरी तरह लागू करने में| उड़ीसा की घटना को आखिर कवच क्यों नहीं रोक सका सबके मन में यह सवाल है क्योंकि कवच को लेकर रेल मंत्रालय और खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दावा किया था कि हम एक ऐसा सिस्टम बना रहे हैं जो यूरोप के सिस्टम से भी ज्यादा बेहतर है हमने टेस्ट भी कर लिया है| ट्रैक पर दोनों तरफ हाई स्पीड ट्रेन आती हैं 400 मीटर की दूरी पर कवर सिस्टम ट्रेन को खुद रोक देता है इसका परीक्षण भी कर लिया गया है तो फिर क्यों नहीं उड़ीसा की घटना के वक्त कवच काम आया
इस पूरी घटना को लेकर अब रेल मंत्रालय अपनी सफाई दे रहा है उसका कहना है कि कवर सिस्टम्रूट के आधार पर होता है दिल्ली हावड़ा और दिल्ली-मुंबई रूट पर ही फिलहाल कवर सिस्टम को लगाया जा रहा है इस पर काम चल रहा है लेकिन जिस रूट पर हादसा हुआ वह कवर सिस्टम शुरू ही नहीं हुआ था अब इसके लिए जिम्मेदार कौन है आप बेहतर समझ सकते हैं कवच सिस्टम पर 2012 से ही काम चल रहा है पहले उसका नाम ट्रेन कोलिजन बचाओ प्रणाली था लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर कवच रख दिया गया
ट्रेन पटरी से उतर जाती है ,पटरी से उतरने के लिए कई कारण होते हैं या तो पटरी टूटी हुई होती है या स्विच में गड़बड़ी के कारण ट्रेन उतर जाती है खराब रखरखाव मौसम की मार और तमाम कई और कारणों के परिणाम स्वरूप देखने को मिलता है लेकिन बीते कई रिपोर्ट्स, कई जांच में बातें स्पष्ट हो चुकी है कि भारतीय रेल की पटरियों की हालत बहुत अच्छी नहीं है, हाई स्पीड ट्रेन के पहिए और ट्रैक के बुनियादी ढांचे पर अधिक दबाव पड़ने से ट्रेन की डिरेल होने का खतरा बढ़ जाता है, ऑपरेटर सिग्नल मैन, रख-रखाव कर्मियों की गलतियों के कारण भी ट्रेन पटरी से उतर सकती है सुरक्षा प्रोटोकॉल का ठीक से पालन ना करने के कारण उपकरणों के देख-रेख और रख-रखाव में लापरवाही के कारण इस तरह के हादसे होते हैं क्योंकि यह है भारतीय रेल!