“शासन का मज़ाक और नियमों की उड़ान: हरैया CHC के ‘राजा बाबू’ डॉक्टर आर.के. यादव की अपनी दुनिया”
हरैया –
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हरैया में तैनात डॉक्टर आर.के. यादव का हालिया व्यवहार यह सिद्ध करता है कि जब किसी सरकारी कर्मचारी को न कानून की परवाह हो, न आदेशों की, और न ही शासन की “जीरो टॉलरेंस” नीति की चिंता – तो वह किसी साम्राज्य के राजा से कम नहीं होता।
प्रदेश सरकार जहाँ स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर गंभीर प्रयासों में जुटी है, वहीं डॉक्टर आर.के. यादव जैसे अधिकारी इस व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुए अपने निजी लाभ की खेती करने में व्यस्त हैं। बकौल शासन आदेश, डॉक्टर यादव का तबादला काफी पहले ही किसी अन्य जनपद में कर दिया गया था। परंतु डॉक्टर साहब तो ठहरे ‘मनमौजी बादशाह’, जिन्हें लगता है कि स्थानांतरण आदेश केवल दीवार पर सजाने के लिए होता है, पालन करने के लिए नहीं।
हरैया में ही जमे हुए डॉक्टर साहब ने न केवल सरकारी आदेशों की धज्जियां उड़ाईं, बल्कि वहीं एक निजी क्लीनिक भी खोल डाली, जहाँ अब खुलेआम मरीजों का इलाज हो रहा है — और वह भी सरकारी पद का धौंस दिखाकर।
जब सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम चला रही है, तब डॉक्टर यादव की यह मनमानी सरकारी तंत्र के मुँह पर करारा तमाचा है। सवाल यह भी उठता है कि संबंधित अधिकारियों की आंखें अब तक क्यों बंद हैं? क्या यह लापरवाही है या फिर मिलीभगत? स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी इस पूरे प्रकरण को और भी संदेहास्पद बना देती है।
डॉक्टर यादव द्वारा निजी क्लीनिक चलाना सिर्फ आचार संहिता का उल्लंघन नहीं, बल्कि सरकारी सेवा नियमों की खुली अवहेलना है। यह न केवल नीतियों के विरुद्ध है, बल्कि उस गरीब आमजन के साथ विश्वासघात भी है, जो सरकारी अस्पताल में ईमानदारी की उम्मीद लेकर पहुंचता है।
‘जनपद के डॉक्टर साहब या अपने नियमों के शहंशाह?’
डॉक्टर आर.के. यादव का यह रवैया यही दर्शाता है कि वे स्वयं को शासन से ऊपर समझने लगे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें न तो स्थानांतरण आदेशों की चिंता है, न ही विभागीय अनुशासन का भय।
सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को ज़मीन पर लागू करने का असली परीक्षण ऐसे ही मामलों में होता है। अगर डॉक्टर यादव जैसे कर्मी खुलेआम नियमों की अवहेलना कर रहे हैं, तो यह शासन की साख पर सीधा प्रश्नचिह्न है।
प्रशासनिक चुप्पी भी एक अपराध है
सवाल यह भी है कि स्वास्थ्य विभाग, जनपद प्रशासन और मुख्य चिकित्सा अधिकारी की भूमिका क्या रही? क्या किसी प्रभाव के चलते यह मुद्दा जानबूझ कर दबाया जा रहा है? यदि ऐसे अधिकारियों पर समय रहते कार्यवाही नहीं की गई तो अन्य कर्मचारी भी यही समझेंगे कि नियम सिर्फ कागज़ पर होते हैं, पालन करना सिर्फ आम आदमी की मजबूरी है।
निष्कर्ष
डॉक्टर यादव का यह आचरण अगर यूँ ही चलता रहा, तो यह न केवल शासन की साख को चोट पहुंचाएगा, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देगा। अब देखना यह है कि क्या शासन इस ‘हरैया के स्वघोषित राजाधिराज’ पर कोई कड़ी कार्रवाई करता है या फिर यह मामला भी बाकी मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
“जब डॉक्टर मरीजों के साथ नहीं, बल्कि नियमों के साथ खिलवाड़ करने लगे, तो समझिए बीमार सिर्फ स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं, पूरा तंत्र हो गया है।”
